अवैध रूप से वसूली करते थे पुलिस वाले :
एक आईपीएस ऑफिसर के पास लगातार शिकायत आ रही थी कि साहब तिराई पर और एक चौकी के सामने पुलिस वाले और कुछ दलाल लोग अवैध रूप से वसूली करते हैं ना दो तो गालियां देते हैं कई बार मारपीट भी करते हैं जैसे ही आईपीएस ऑफिसर ने यह बात सुनी उन्हें लगा कि शायद कोई जानबूझकर शिकायत कर रहा है और चौकी और पुलिस को शायद बदनाम करने की बात आ रही है
कई बार शिकायत आने पर बनाया प्लान :
लेकिन आईपीएस ऑफिसर को जो दोबारा तिवारा चौथी बार शिकायत मिलती है तो उन्हें लगता है कि शायद कुछ ना कुछ बात है देखनी चाहिए वो आईपीएस ऑफिसर अपने सीनियर आईपीएस ऑफिसर से बातचीत करते हैं और कहते हैं कि साहब कुछ इस तरह की बात है तब दोनों आईपीएस ऑफिसर मिलकर एक प्लानिंग करते हैं कहते हैं कि क्यों ना कंडक्टर बनकर खुद देखते हैं और देखने के बाद पता करते हैं
रंगे हाथों पकड़ने के लिए बनना पड़ा कंडक्टर :
आखिरकार इसमें कितनी सच्चाई है अब एक ट्रैक ड्राइवर से बात करते हैं ट्रैक ड्राइवर से बात करने के बाद खुद दोनों कंडक्टर बन जाते हैं साथ ही एक और व्यक्ति यानी कि एक और सब इंस्पेक्टर होता है उसे भी अपने साथ बिठा लेते हैं जैसे ही ट्रक उस चौकी के सामने से गुजर रहा था तभी एक पुलिस वाला होता है साथ में एक और आम व्यक्ति होता है दोनों मिलकर उस ट्रक को रोक लेते हैं और ट्रक को रोकते हैं तो उसके बाद कहते हैं
एक ट्रैक से लेते थे 500 रूपए:
कि निकालो पैसे जब बात पैसे निकालने की आती हैं तो उस ड्राइवर को जैसा बताया गया था बोलने के लिए जैसे डायलॉग की डिलीवरी करने के लिए कहा गया था ड्राइवर तो वैसे ही बात कर रहा था लेकिन आईपीएस ऑफिसर जो होते हैं वो कहते हैं कि भाई किस बात के पैसे तो उधर से आवाज आती है कि क्या तुम शायद नए हो इसलिए इस तरह की बातें कर रहे हो अभी दो डंडे पड़ जाएंगे तो शायद तुम पैसे निकाल के चुपचाप दे दोगे वो पूछता है कि तुम कौन हो वो कहता है कि मैं सिपाही हूं और मेरा नाम सतीश गुप्ता है जिससे चाहे उससे जाकर शिकायत कर देना जब इस तरह की बात एक सिपाही बोल रहा था पूरे रुबाब के साथ बोल रहा था
आईपीएस अफसर ने निकाली सिपाही की हेकड़ी :
अंदर आईपीएस ऑफिसर बैठे हुए सीनियर और जूनियर और एक साथ ही दरोगा बैठे हुए थे उस सिपाही को ये पता नहीं था कि उसके सीनियर ऑफिसर भी बैठे हुए हैं तुरंत ही दरोगा कूदकर उस ट्रक से नीचे जाते हैं और जाकर उस सिपाही का हाथ पकड़ लेते हैं कहते हैं कि तुम जो ₹500 वसूली कर रहे हो किसके कहने पर कर रहे हो कि साहब यह वसूली मैं अपने लिए नहीं कर रहा था बल्कि मुझसे तो एसओ साहब ने बोला था
थाना इंचार्ज कराता था प्राइवेट लोगों से वसूली :
उनके लिए कर रहा था पूछते हैं कि वो व्यक्ति कौन था वो कहते हैं कि साहब वो तो प्राइवेट था लेकिन वह प्राइवेट व्यक्ति तो वहां से भाग जाता है इसके बाद कानूनी प्रक्रिया शुरू हो जाती है कानून प्रक्रिया कुछ ऐसी शुरू होती है कि इसमें सात पुलिस वालों सहित 23 लोगों पर एफआईआर दर्ज हो जाती है
तत्काल आईपीएस ने 17 पुलिस कर्मी को किया सस्पेंड :
साथ ही जो चौकी और साथ ही थाने इसमें लगभग 17 पुलिस वाले सस्पेंड हो जाते हैं और बात यहीं तक नहीं है बात पहुंच जाती है उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ तक और जैसे उनके पास बात पहुंचती है तो जो जिले के एसपी और एएसपी साहब होते हैं उनका भी अचानक ही तबादला हो जाता है और यही बात अखबार सोशल मीडिया टेलीविजन हर किसी के माध्यम से यह खबर पूरे हिंदुस्तान में जब वायरल होने लगती है तो वह दोनों जो आईपीएस ऑफिसर होते हैं उनकी सब लोग वाहवाही करने लगते हैं आज की इस कहानी के माध्यम से यही जानने की य समझने की कोशिश करेंगे कौन थे वो आईपीएस ऑफिसर जिनकी आज खूब वाहवाही हो रही है
वैभव कृष्ण की ईमानदारी :
नमस्कार आज की जो सच्ची घटना मैं आपको तो सुने जा रहा हूं ये सच्ची घटना है उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया की दरअसल आजमगढ़ जोन के जो आईपीएस ऑफिसर हैं डीआईजी जिनका नाम वैभव कृष्ण होता है उनके पास लगातार सूचना मिल रही थी कि साहब जो बलिया का एक थाना है नरही उसका जो भर तोली तरह है
पैसे बसूलते समय गाली और मारपीट करते थे पुलिस वाले:
वहां पर लोग अक्सर कुछ लोग खड़े हो जाते हैं कुछ पुलिस वाले भी होते हैं और वो अवैध रूप से वसूली करते हैं ना दो तो मारपीट करते हैं गालियां देते हैं अब करें तो क्या करें जैसे आईपीएस ऑफिसर ने ये बात सुनी उन्होने कहा ठीक है देखते हैं शुरुआत में उन्होंने इस जो सूचना थी इस शिकायत को थोड़ा सा शिथिलता के साथ लिया लेकिन उन्हें लगा कि जब बार-बार शिकायत आ रही थी तब वो अपने एडीजे जोन जो कि बनारस के एडीजे जोन होते हैं जिनका नाम पीयूष मोरडिया होता है उनसे बातचीत करते हैं कहते हैं कि साहब एक तरह की शिकायत मिल रही है क्या करना चाहिए
सादा बर्दी में किया मुआइना :
अब जो एडीजे जोन होते हैं बनारस के वो कहते हैं कि ठीक है देख लेते हैं कि आखिरकार क्या मामला है तभी चार दिन लगातार एक दो पुलिस वाले सादा वर्दी में उन दोनों जगह पर खड़े हो जाते हैं ये देखने के लिए जानने के लिए आखिरकार इसमें कितनी सच्चाई है क्या ये शिकायत सच्ची है या झूठी है जब चार दिन लगातार शिकायत देखी जाती है और वहां से सैकड़ों की संख्या में वाहन गुजर रहे थे और डंडों के आवाज से उन वाहनों को रोका जाता था कुछ तो पुलिस वालों को देखकर खुद ही जाकर पैसे दे दिया करते थे तो कुछ से जानबूझकर मांगे जा रहे थे
यह वसूली बहुत लंबे अरसे से चल रही थी:
क्योंकि यह सिलसिला थोड़े बहुत दिनों से नहीं लंबे समय से लगातार चल रहा था अब यह सूचना पहुंच जाती है आईपीएस ऑफिसर वैभव कृष्ण के पास और साथ ही वो अपने सीनियर अधिकारी जो एडीजी जोन होते हैं पीयूष मोडिया के पास उनके पास कहते हैं कि बात तो सच है तो इसके लिए अब ये दोनों अपनी अपनी तरह से प्लानिंग करते हैं और कहते हैं कि एक कुछ टीम बनाते हैं यानी कि अब एडीजी जोन जो होते हैं वो दो टीम बनाते हैं और साथ ही आईपीएस वैभव कृष्ण जो आजमगढ़ के डीआईजी होते हैं
पकड़ने के लिए बनाई गई थी 5 टीम:
वह अपनी तरफ से तीन टीम बनाते हैं टोटल मिलाकर पांच टीम बनाई जाती हैं और पांच टीम को बनाने के बाद वो कहते हैं कि हम बलिया के जो नरही थाना है उसके भरौली तिराहे पर हम लोग सिर्फ चलेंगे देखेंगे लेकिन करेंगे कुछ नहीं इसके बाद वो सीधे यहां से रात के लगभग ये 1:00 बजे के आसपास का वाकया रहा होगा 24 और 25 जुलाई 2024 की रात की बात है पांच अलग-अलग गाड़ियां होती हैं पांच अलग-अलग गाड़ियों में टीम भी पांच ही होती हैं यहां से सीधा ये भरतो तराय पर पहुंचते हैं और भरतो तराय के बाद वहां रुकते नहीं है वहां से सीधे गाड़ी बक्सर यानी कि बिहार की तरफ गाड़ी चली जाती है अब यहां से गंगा नदी का जो पुल है उसको पार करके आगे चले जाते हैं और बक्सर जाने के बाद अब कहते हैं कि चलो ठीक है वापस चलते हैं यानी कि इनकी जो गाड़ियां थी वो प्राइवेट गाड़ियां हैं और प्राइवेट ही इन्होंने कपड़े पहने हुए थे इनकी पुलिस के कोई कपड़े उड़े नहीं पहने हुए थे सीधा जब वापस आते हैं वापस आने के बाद यह देखते हैं कि वहां पर रात के लगभग 2 बजे के आसपास का वक्त हो चला था पहले ये 1:00 बजे उस राह पर पहुंचे थे फिर वापस लौट के आते हैं तो रात के 2 बज जाते हैं देखते क्या है
15 – 20 प्राइवेट लोग करते थे वसूली:
कि एक पुलिस वाला है जिसका नाम हरि दयाल है वो अलग-अलग ट्रकों से पैसे वसूल रहा है और तीन पुलिस वाले आराम से कुर्सियों पर बैठे हुए हैं और लगभग 15 या 20 लोग होंगे जो सादा वर्दी में थे और वो इधर-उधर अपने खड़े हुए हैं और वो इस तरह से रोव गालि कर रहे हैं कि जो भी ट्रक गुजर रहा है अब ट्रक कम से कम यहां पर सैकड़ों की संख्या में इस वाहन के एक साइड में खड़े हुए हैं ताकि और वाहनों को आने जाने में किसी भी तरह की कोई दिक्कत ना हो इसी बीच में जब पैसे मांगे जा रहे थे तो इसकी जो पांच टीम जो पुलिस वालों की होती हैं पांच टीम जाकर एक पुलिस वाले यानी कि हरि दयाल सिंह का हाथ पकड़ लेते हैं और हरि दयाल का जैसे हाथ पकड़ा जाता है तो हरि दयाल पूछता है क्या बात है कौन हो और जो 15 – 20 लोग जो इधर-उधर खड़े हुए थे वो भी वो इधर जब पुलिस वाले का हाथ पकड़ा जाता है
आईपीएस को देखते ही मच गई भगदड़:
उनकी तरफ जब दौड़ने की को कोशिश कर रहे थे तो आवाज लगती है कि तुम्हें पता नहीं है कि आजमगढ़ के डीआईजी साहब हैं साथ ही बनारस जोन के इसमें एडीजी साहब हैं इतना कहना था कि वहां पर सिर्फ भगदड़ मच जाती है अब जो दलाल होते हैं वो भी इधर-उधर भागने लगते हैं ऐसा भाग रहे थे कि वो इधर-उधर भागते भागते एक दूसरे के ऊपर भी गिर रहे थे तीन पुलिस वाले बैठे हुए थे अभी तक शांत आराम से उन्हें लगता है कि शायद ये पकड़े जाएंगे और ये अधिकारी हैं तो वो जंगल के रास्ते में जहां से जैसे मौका मिल रहा था वैसे-वैसे भागते चले जाते हैं हरी दयाल को पकड़ लिया जाता है और हरिदयाल को जब पकड़ा जाता है पूछा जाता है कि ये जो भागे थे वो कौन-कौन थे तो बताता है
जनता के रक्षक ही बन बैठे भक्छक:
कि साहब इसमें एक हेड कांस्टेबल विष्णु यादव है दूसरा कांस्टेबल दीपक मिश्रा और बलराम सिंह ये तीन पुलिस वाले थे जो कुर्सी पर बैठे हुए थे बाकी लगभग 15 – 20 जो लड़के थे जिन्होंने सादा कपड़े पहने हुए थे वो भी पकड़े जाते हैं और वे पकड़े जाते हैं तो क्योंकि पांच टीम उन्होने चारों तरफ से घेरा हुआ था अब इसी बीच में इनको पकड़ लिया जाता है पकड़ने के बाद अब हरिदयाल से जब बातचीत करने लगते हैं तो हरिदयाल की जो आंखों में आंसू होते हैं वो गिड़गिड़ा रहा था रो रहा था और पैरों के बल बैठ जाता है कहता है साहब मुझे माफ कर दो गलती हो गई और मैं इस तरह की वसूली नहीं करूंगा
पोस्ट के अनुसार होता था वसूली के पैसों का बटवारा:
उसे पूछा जाता है कि भाई कितने रुपए वसूल रहे थे उसने कहा साहब मैं तो सिर्फ प्रत्येक गाड़ी से ₹500 रुपए लेता हूं तो खैर पता नहीं लेकिन अवैध रूप से वसूली जरूर हो रही थी इसकी पक्की जानकारी है जैसे इससे हरदयाल से पूछा जाता है कि तुम इस पैसे का करते क्या हो तो कहता है कि साहब ₹100 तो हम पुलिस वाले रखते हैं और 400 जो देते हैं वो पन्ने लाल जो एसएचओ साहब होते हैं उनको देते हैं जो कि नरही थाने के इंचार्ज होते हैं अब जैसे ये बात सुनी जाती है तो कहता है कि साहब यहां पर मैं अकेला नहीं होता बल्कि जो बाकी पुलिस वाले होते हैं रोटेशन के हिसाब से उनकी ड्यूटी लगती है
तनखा पर रखे थे प्राइवेट लोग:
और पुलिस वालों के साथ ये 15-20 लड़के होते हैं इनको महीने की तनख्वा दी जाती है यह सारे पैसे वसूल के हम लोगों को देते हैं और हम लोग पैसे आगे एसओ साहब को पहुंचा देते हैं इस तरह की जब बातें चल रही थी ये हिसाब किताब लगाया जाता है कि लगभग 1000 ट्रक पूरी रात में गुजर जाते हैं बालू लेकर जो कि बक्सर की तरफ से आते हैं
हर रात होती थी 5 लाख की वसूली:
कि बिहार की तरफ से जब यूपी की तरफ कदम रखते हैं तो जब हिसाब किताब लगाया गया तो लगभग ₹ 5 लाख एक रात में ही इस नरही थाने के पुलिस वाले जो होते हैं वसूल लेते हैं और 5 लाख में से 4 लाख वो एसओ साहब को दे देते हैं अब जैसे ही अधिकारियो की बात पता चलती है तो अधिकारी बड़े सखते में रह जाते हैं कि यह तो इंफॉर्मेशन बिल्कुल ही सचमुच निकलती है इसमें कोई झूठ नहीं होता अब एडीजी साहब और साथ ही ये जो बाकी पुलिस वाले थे इन सबकी तलाशी लेते हैं तलाशी लेने के बाद उस वक्त ₹ 37360 के आसपास मिलते हैं
अगली चौकी पर भी हुआ करती थी वसूली:
अब यहां से अगली भी शिकायत थी क्योंकि यहां से लगभग 5 किलोमीटर दूर एक चौकी पड़ती है कोंटा डी कोंटा डी पर भी शिकायत थी कि यहां पर भी इस तरह से होता है यानी कि वसूली होती है अब आईपीएस ऑफिसर वैभव कृष्ण और साथ ही एडीजी साहब जो होते हैं वो उनसे आपस में बात कर हैं कि साहब आगे क्या करना है वो कहते हैं कि आगे करना क्या है यहां से कंडक्टर बनके चलते हैं और देखते हैं कि क्या कितनी सच्चाई है क्या चौकी पर वसूली होती है नहीं होती है लेकिन इतना तामा जामा अगर हम लेके जाएंगे बाकी पुलिस वालों के लेकर जाएंगे तो शायद इसमें गड़बड़ हो जाएगी जितने भी लोग पकड़े जाते हैं इनको तो नरही थाने में बंद कर दिया जाता है लेकिन यह सूचना अभी तक लीक नहीं हुई थी और इसी बात की शर्त रखी थी आईपीएस ऑफिसर वैभव कृष्ण ने कि जो टीम का हिस्सा बनेगा यदि किसी ने भी सूचना लीक करने की कोशिश की तो समझ लेना उसके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज होगी और वो भी जेल जाएगा अब ये सूचना लीक नहीं होती है
वैभव कृष्ण की ईमानदारी का खौफ:
अब जिले के जो एसएसपी होते हैं एसपी होते हैं बाकी अधिकारी होते हैं आराम से इत्मीनान से इतने सो रहे थे चाहे चौकी इंचार्ज हो चाहे वो थाना अध्यक्ष हो किसी को कोई कानो कान खबर नहीं थी कि इतना बड़ा छापेमारी हो रही है और पांच टीम छापेमारी कर रही है तभी एक ट्रक ड्राइवर होता है जिसका नाम जयराम शर्मा होता है उसका ट्रक ड्राइवर का नंबर होता है यूपी 61 ए 2756 उससे बातचीत की जाती है पूछा जाता है कि कहां जा रहे हो कहता है साहब मैं तो गाजीपुर की तरफ जा रहा हूं कहते हैं कि हमें भी अपने साथ बिठा लो और हम लोग आपके कंडक्टर बन के जाएंगे और आपके साथी बनके जाएंगे तो इसलिए आप इस बात का एहसास मत होने देना कि हम लोग अधिकारी हैं यानी कि इसमें एडीजी साहब जो आईपीएस ऑफिसर पीयूष मोडिया होते हैं साथ ही आईपीएस ऑफिसर वैभव कृष्ण होते हैं और उनके साथ एक उनके हमराह भी होते हैं जो सब इंस्पेक्टर होते हैं तीनों अधिकारी ट्रक में बैठ जाते हैं उस ड्राइवर के साथ और जैसे ही ये कोंटा डी जो चौकी होती है उसके सामने से गुजर ही रहे थे कि वहां पहले से एक तो वहां की लाइन लगी हुई थी हर वाहन को वो तब निकलने दे रहे थे जब वाहन से 500 यानी कि 500 तो वो एक नरही का जो इलाका है वहां पर दे कर आ रहे थे भरली राहे पर और आगे जो कोंटा डी चौकी होती है वहां पर भी वसूली हो रही थी 500 वहां और 500 आगे हालांकि चौकी पे कभी 500 कभी 400 इस तरह से पैसे कम या ज्यादा भी हो जाते थे वहां पर दो व्यक्ति होते हैं दोनों व्यक्ति आराम से डंडे मार मार के या फिर जिस तरह से पुलिस का अपना रोब होता है
पुलिस की गुंडागर्दी :
कुछ इस तरह से रोब गाली करते हुए इस ड्राइवर को रोकते हैं जिसका नाम जयराम होता है और जयराम से कहते हैं कि भाई पैसे निकालो अब यहां आईपीएस ऑफिसर जैसे ही उस पुलिस वाले से बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे तो उस पुलिस वाले पर गरम हुए कहा कि ज्यादा ज्ञान पेलने की जरूरत नहीं है नहीं तो डंडा पेल दिया जाएगा कुछ इस तरह की भाषा का प्रयोग किया यहां जो गाड़ी के अंदर सब इंस्पेक्टर बैठे हुए थे उन्हें थोड़ा गुस्सा भी आ जाता है कूद के सीधा नीचे जाते हैं और जाने के बाद उस सिपाही को पकड़ लेते हैं सिपाही का नाम होता है सतीश चंद गुप्ता सतीश चंद गुप्ता का जब हाथ पकड़ा जाता है वह कहता है दिमाग ख़राब हो रहा है तुम जानते नहीं हो किससे बात कर रहे हो वह कहता है कि तुम्हें पता नहीं है तुम किससे बात कर रहे हो मैं सब इंस्पेक्टर हूं और अंदर एडीजी साहब बैठे हुए हैं और साथ ही आईपीएस ऑफिसर वैभव कृष्ण कुमार बैठे हुए हैं वैभव कृष्ण का नाम तो बहुत ज्यादा सुर्खियों में रहा है क्योंकि वो बेहद ईमानदार किस्म के अधिकारी रहे हैं इसलिए पूरा प्रदेश क्या पूरे देश के बहुत सारी जगह उन्हें जाना जाता है पहचाना जाता है जैसे ही सतीश चंद गुप्ता सिपाही ने जो वसूली कर रहा था उसने यह बात सुनी उसके हाथ पैर कांपने लगते हैं और साथ में उसके पास खड़ा हुआ था अशोक नाम का एक व्यक्ति जो कि सादा वर्दी में था यानी कि वो पुलिस वाला नहीं था वो सिर्फ पुलिस के लिए काम कर रहा था महीना जैसे क्या किसी को नौकरी पर रख लिया जाता है बस मौका मिलते ही वो तो अशोक तो वहां से भाग जाता है अब सतीश चंद हाथ पैर जोड़ के कहने लगता है साहब मुझे माफ कर दो मैं मेरी कोई गलती नहीं है मुझे तो सर चौकी इंचार्ज साहब ने कहा था चौकी इंचार्ज यानी कि राजेश कुमार राजेश कुमार अलग-अलग टाइम में अलग-अलग पुलिस वालों की ड्यूटी लगाते हैं उनका काम होता है कि वह दलालों के साथ मिलकर इन ट्रकों से जो वालू जाता है रेत जाता है इन ट्रक ड्राइवरों से वो 500 की वसूली करते हैं बस इतना होना था